: राष्ट्रीय आपातकाल

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राष्ट्रीय आपातकाल

राष्ट्रीय आपातकाल

अनुच्छेद 352 के अनुसार राष्ट्रपति को युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट में होने के आधार पर 'आपातकाल की उद्घोषणा' करने की शक्ति प्राप्त है। इस उद्घोषणा का उद्देश्य भारत की सुरक्षा बनाए रखना है और अन्य बातों के साथ उसका प्रभाव यह है कि संघ को राज्य के क्रियाकलापों पर या उनमें से ऐसे कार्य पर व्यापक नियन्त्रण प्राप्त हो जाएगा, जो सशस्त्र विद्रोह या बाह्य आक्रमण से प्रभावित है। 44वें संशोधन से पूर्व 'आन्तरिक उपद्रव' की वजह से भी आपात स्थिति की घोषणा की जा सकती थी, किन्तु 44वें संशोधन के अनुसार आपातकाल की घोषणा के लिए 'आन्तरिक उपद्रव ही काफी नहीं है, उसके लिए 'सशस्त्र विद्रोह' आवश्यक होगा।

44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा आन्तरिक अशान्ति' के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह' शब्द रखा गया है। 44वें संविधान संशोधन के अनुसार अनुच्छेद 352 के अधीन उद्घोषणा निम्नलिखित रूप से समाप्त हो सकती है 1. यह उद्घोषणा किए जाने की तारीख से एक माह की समाप्ति पर प्रवर्तन में

नहीं रहेगी यदि उस अवधि के समाप्त होने के पहले संसद के दोनों सदन संकल्प द्वारा उसका समर्थन नहीं करते हैं। यदि उद्घोषणा के समय या उसके एक माह के भीतर लोकसभा का विघटन हो गया है, तो उस सदन के पुनर्गठन के बात पहली बैठक होने की तारीख से तीस दिन तक उद्घोषणा बनी रहेगी, परन्तु ऐसा तभी सम्भव होगा। जब राज्यसभा ने इस बीच संकल्प द्वारा उसका अनुमोदन कर दिया हो। 2. संसद के दोनों सदनों द्वारा संकल्प द्वारा अनुमोदित किए जाने से उद्घोषणा

छ: माह तक चल सकती है। 3. प्रत्येक संकल्प उस सदन की कुल संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित किया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय आपात शक्ति का उपयोग

अनुच्छेद 352 के अधीन आपात की पहली उद्घोषणा राष्ट्रपति द्वारा नेफा में

चीनी आक्रमण को ध्यान में रखते हुए 24 अक्टूबर, 1962 को की गई थी। दूसरी

उद्घोषणा राष्ट्रपति ने 3 दिसम्बर, 1971 को की जब पाकिस्तान ने भारत के

विरुद्ध युद्ध घोषित किया। तीसरी उद्घोषणा 25 जून, 1975 को 'आन्तरिक

अशान्ति के आधार पर की गई थी।

राष्ट्रपति शासन

यदि किसी राज्य में संवैधानिक तन्त्र विफल हो जाए तो अनुच्छेद 356 के अनुसार राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। संवैधानिक तन्त्र या तो किसी राजनीतिक गतिरोध के परिणामस्वरूप टूट गया हो या राज्य द्वारा संघ के निर्देशों का अनुपालन न करने के कारण। ऐसी उद्घोषणाओं के द्वारा राष्ट्रपति, राज्य सरकार की शक्तियाँ अपने हाथ में ले सकता है और संसद को राज्य के विधानमण्डल की शक्तियाँ दे सकता है।

इस प्रकार की उद्घोषणा प्रायः उस स्थिति में की जाती है जब किसी राज्य में अस्थिरता बढ़ जाती है और वहाँ मन्त्रिमण्डल का बनना अथवा सरकार का चल पाना मुश्किल हो जाता है। इस उद्घोषणा का अनुमोदन संसद द्वारा दो महीने के भीतर आवश्यक हो जाता है। संसद की स्वीकृति के पश्चात् राष्ट्रपति शासन छः महीने तक प्रभावी रह सकता है। 44वें संशोधन अधिनियम के पूर्व राष्ट्रपति शासन की अवधि छः छः महीने करके तीन वर्ष तक प्रभावी रखी जा सकती थी, किन्तु इस अधिनियम द्वारा तीन वर्ष की अवधि को घटाकर एक वर्ष कर दिया गया है। राष्ट्रीय आपात का उपयोग वर्ष 1950 से अब तक 126 बार राष्ट्रपति शासन का प्रयोग किया जा चुका है अर्थात् औसतन प्रत्येक वर्ष में दो बार इसका उपयोग होता है। सर्वप्रथम राष्ट्रपति शासन वर्ष 1951 में पंजाब में लगाया गया।

वित्तीय आपातकाल

संविधान के अनुच्छेद 360 द्वारा राष्ट्रपति को वित्तीय आपात की घोषणा करने की शक्ति प्रदान की गई हैं। यदि राष्ट्रपति को यह लगता है कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं, जिससे संघ या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व तथा साख संकट में हैं तो वह वित्तीय आपात की उद्घोषणा कर

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